Thursday, July 23, 2009

समलैंगिकता

delhi हाई कोर्ट से समलैंगिकता को मान्यता मिलने के बाद भाइयों के boyfriend और बहनों की girlfriend बड़े ही खुश नज़र आ रहे है और आख़िर हो भी क्यों न आख़िर वो ये लडाई समाज के खिलाफ नही अपने अस्तित्व के लिए जो लड़ रहे थे। और समाज की तो आदत ही है की जो अपने जैसा न हो उसे ख़ुद से अलग कर दिया जाय उसे नीचा और तुछ समझा जाय। ये धर्म ,जातियाँ इसी का तो परिणाम है।
हम समलैंगिकता के समर्थक तो नही परन्तु मानवता के समर्थक ज़रूर है। सृष्टि की रचना की इज्ज़त करते है। हर इंसान को अपने ढंग से जीने का हक है । हमारा संविधान भी हमें आज़ादी की ज़िन्दगी जीने का वचन देता है। इसमे समलैंगिको का दोष नही जो समाज से अलग विचारधारा रखते है। समाज का बने नियम लड़का लड़की की ही शादी हो इसमे यकीन नही रखते। और ये तो जगजाहिर ही है की जिसने समाज के विरूद्व जाने की कोशिश की है उसे समाज का विरोध का सामना करना पड़ा है।
अब भले ही हजारो समलैंगिको को इस निर्णय से खुशी मिली हो पर mrs खन्ना जैसी माओ को इससे बड़ी तकलीफ भी पहुँची है। अपने जिगर का टुकड़े को ममता का वास्ता दे कर शायद मना भी लेती पर कानूनन मान्यता मिलने का बाद स्तिथी कुछ और हो गई है । रही सही कसार delhi सुप्रीम कोर्ट ने इस विषय में स्टे लगाने से मना कर का पूरी कर दी। अपने बच्चो को खुश देख कर माता पिता खुश तो ज़रूर होंगे पर घर में बहु लाने या अपनी बेटी को विदा करने और नाती पोते को गोद में खिलाने का सपना अब अधूरा सा लगता है।
ये भी सच है की ये लोग किसी दूसरी दुनिया के नही बल्कि हमारे ही आस पास के लोग है जिन्हें समाज खासकर भारतीय समाज द्वारा स्वीकार करने में काफी समय लगेगा। उनसे भेदभाव का ताज़ा उदहारण अपने ही देश के एक बड़े अस्पताल द्वारा उनका रक्त दान नही लिया जाना है इस डर से की उन्हें भी इसका प्रभाव न पड़े । जैसे ये कोई बीमारी हो ।
अभी एक टीवी चैनल पे इस विषय में चर्चा होते देख बड़ा दुःख हुआ क्यूंकि ये चर्चा का नही चिंता का विषय है की देश का सबसे बड़े क़ानून द्वारा मान्यता मिलने का बाद भी विभिन्न संस्थाओं, विभिन्न हस्तियों द्वारा विरोधी टिपण्णी देने का कोई अर्थ नही रह जाता ।
इस पूरे प्रकरण का कोई +वे पॉइंट हो या न हो परतु बढती जनसँख्या ज़रूर कम हो सकेगी। हालाँकि विज्ञानं ने बिना पुरूष के शुक्राणु बनाने और बिना महिलाओं के गर्भ विकसित करने का दावा तो किया है परन्तु इसमे कितनी सच्चाई है इसका पता तो भविष्य में ही पता चलेगा। तब तक जनसँख्या विस्फोट की महामारी से बचा जा सकेगा। और हो सकता है किसी दयालु समलैंगिक जोड़े को किसी अनाथ को गोद लेते एक पुण्य करते भी देखा जा सकता है।
अंत में समय का रुख यही कहता है की परिवर्तन संसार का नियम है और सत्य कितना भी कड़वा लगे उसे स्वीकार करने में ही सबकी भलाई है।
हम खुले दिल से मानवता का समर्थन करते है और आप.......


Thursday, July 9, 2009

वाक् एंड टॉक

हमारे शर्माजी walk and talk आईडिया से बड़े प्रभावित हैं। और तो और कल से उसपर अमल करने का निश्चय भी कर लिया है। वाह सरजी
सुबह नित्य क्रिया में लिप्त बॉस का कॉल भी नही उठाया अरे भाई क्योंकि टॉयलेट में सिर्फ़ talking की सुविधा है walking की नही। कुछ भी हो आज तो इसे अपनाना ही है। इस walking के चक्कर में बढ़िया नाश्ते का स्वाद किरकिरा हो गया । बंटी की स्कूल बस भी उसे छोड़ कर चले गई आख़िर talking करते करते थोडी walking ही तो कर ली थी और बस स्टाप से थोड़ा दूर ही तो निकल आय थे। चिल्ला चिल्ला कर रोकने की कोशिश भी की लेकिन कोई फायदा नही.बसवाले ने तो पीछे मुड़कर भी नही देखा।
अब पेट्रोल भरवाते समय ज़रा की walking ही तो कर रहे थी इसमे इतना गुस्सा किस बात का पर पीछे से गालियों की आवाज़ ने वो भी न करने दी। अब ५ मिनट ट्रैफिक जाम हो गया था तो क्या हुआ।
ऑफिस में बॉस तो यमराज की तरह उनका ही इंतज़ार कर रहा था उन्हें यु walking talking करते देख गुस्से से लाल पीला हो गया और साडी भड़ास files में भर कर उनके टेबल पर दे मरी उन्हें समझ नही आया से गुस्सा अभी का था या सुबह फ़ोन नही उठाने का। आज तो काम करते करते कमर टूट गई।
अब इसमे तो उनकी कोई गलती नही जो लिफ्ट में walking talking को महिला सहकर्मी ने eve teasing समझ कर हल्ला मचा दिया। बैजती हुई सो अलग धुनाई हुई वो अलग।
बाज़ार में दुकाने बड़ी छोटी है walking talking के लिए जगह ही नही तो बन्दा बहार जाएगा ही अब वो क्या करे अगर उसके आर्डर का समान कोई और ले जाय ओर बिना खरीदे ही बिल उसे भरना पड़े।
हद तो तब हो गई मुख्य रास्ते पे गाड़ी खड़ी करके ज़रा सी walking talking कर ही रहे थे की मुय चोर गाड़ी ले के चंपत हो गय।
इससे बुरा क्या होता घर आ के कान पकड़ लिए
नो walking while talking
नो talking while walking
इसे कहते है -----why this idea sirji


Saturday, June 27, 2009

हम किसी से कम नही

इस बार गर्मी ने पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए है . जब टीवी के सारे पकाऊ सीरियल और झुलसा रहे थे तब बन कर सोनी टीवी पे धमाकेदार एंट्री ली एक नए शो एन्तेर्तैन्मेंट के लिए कुछ भी करेगा ने।
कितने समय से कुछ नए तरह के शोज की आस थी और कुछ सीरियल इस धोके के साथ उतारे भी गए थे की ये सबसे अलग और कुछ हटकर है पर वही दूध कम पानी ज़्यादा की तरह उनमे भी नयापन कम नाटक ज़्यादा निकला । हर आम सीरियल की तरह दर्शको को पता चल ही गया की आगे क्या होनेवाला है। कुछ अलग नही होने के कारण ये भी उम्मीद पे खरे नही उतरते । परिणाम निराशाजनक ।
पर कमाल तो तब हुआ जब नए- नए कलाकार अलग- अलग कलाओं को एक ही मंच पर प्रस्तुत करने लगे। क्योंकि समय सीमा १ मिनट की है तो बोरियत और दोहराव की गुन्जायिश ही नही .बहुत ही प्रेरणादायक और जूनून से भरा ये शो हमारा तो मन मोह गया ।
हर पल कुछ नया हमारी सोच से भी परे । पता नही अगले पल खजाने में से कौन सा नया मोती निकले । अब जा कर लोगो को एहसास हुआ की फ़िल्म और टीवी के हीरो के अलावा भी असल जिंदगी में कितने हीरो है। हमारे आसपास, हमारे अन्दर भी कितने हुनर मौजूद है।
हौसला वाकई बढ़ा है लोगो ने दर्शक से कलाकार बनने का सफर शुरू कर दिया है। वाकई हमारा देश और उसके नागरिक कितने महान है। हर गली, हर घर और हर इंसान में कोई न कोई कला मौजूद हैजिसे बाहर निकल कर खुली साँस लेने का न्योता आया है।
कला का कोई मोल नही वो तो अनमोल है और जब दुनिया उसे देखती है तो उसमे भी कुछ करने का कुछ दिखाने का जूनून बढ़ता है।
हमें यकीन है की इस शो के प्रोड्यूसर ,जज बूढे हो जायंगे पर कला का ये मंच कभी सूना नही रहेगा । हर दिन कोई आयेगा और उसके अगले दिन कोई और आयगा . क्योंकि हम भारत के नागरिक है जिसकी कला का लोहा सारी दुनिया मानती है । यहाँ हर पल एक नई कला जन्म लेती है हर पल एक कलाकार जन्म लेता है.
इस जादू के पिटारे से आने वाले समय में न जाने कितने और कला के खजाने निकलेंगे जो अपनी चमक से दुनिया को रौशन करेंगे.
क्या आप भी तैयार है ।

Tuesday, May 19, 2009

मेरा पहला vote

चुनाव 09
भारत -लोकतंत्र की एक मिसाल। और इस महान देश का हिस्सा होते हुए भी हमें आज तक पाने मताधिकार का उपयोग न कर पाने की ग्लानी से मुक्त होने का मौका इस वर्ष संपन्न होने वाले लोकसभा चुनाव ने दिया। धन्यवाद मीडिया का जिसने "जागो रे " जैसे ऐड बना कर हमें व् हमारे जैसे कई लापरवाह लोगो को अपने कर्तव्य और अधिकारों से अवगत कराया । और धन्यवाद भारत निर्वाचन आयोग का जिसने हमारी सुध ली और अंततः दो साल बाद इस वर्ष हमारा पहचान पत्र बन ही गया ।
जागो रे ने वाकई देश को जगाने का काम किया और हमें अर्थपूर्ण शिक्षा प्रदान की। वक्त था तो अब बस ख़ुद को एक जिम्मेदार व् जागरूक नागरिक का दर्जा दिलाने का। गहन विचार -विमर्श , तर्क -वितर्क करके हमने ये निर्णय ले लिया की किसे अपने देश की कमान सँभालने का मौका देना हैऔर इस दिशा निर्देश के साथ की हमें अगले दिन सुबह जल्दी उठा दिया जाय हम सोने चले गए , पर आँखों से नींद गायब थी क्योंकि कल की सुबह भविष्य की नई किरण लाने वाली थी।
हालांकि अपने पहचान पत्र को देख कर हमें बड़ी निराशा हुई क्योंकि कोई भी पहचान सही और हमारी प्रतीत नही होतीथी। फोटो तो सबसे निराशाजनक थी और उस पत्र को ले कर कोई भी वोट देने जा सकता था। पर जागरूकता का जूनून इतना बढ़ गया था की हमने ये सोचकर गलती माफ़ कर दी की शायद हम ही फोटो खीचते वक्त बरसात में भीग रहे थे।
आख़िर वो सुबह आई और हम अपने गंतव्य के लिए चल दिए। रास्ते भर भी विचारो का आदान -प्रदान चलता रहा और सामने हमारी मंजिल हमें पुकारने लगी. दिल जोरो से धड़कने लगा की आख़िर वो मौका आ ही गया।
पर हाय रे किस्मत वोटर लिस्ट में हमारा नाम गायब । कभी इस लिस्ट कभी उस लिस्ट , धूप में खड़े- खड़े हम यू अपना नाम व् भीगी फोटो तलाशने लगे जैसे कोई जमीन में गढा खजाना ढूंढ रहा हो. वहा बैठे लोगो ने भी हमारी समस्या में कोई खासी दिलचस्पी नही दिखाई । अब क्योंकि हम ही देश के होनहार नागरिक थे तो ये जिम्मा भी हमने ले लिया और स्वयं लिस्ट में अपना नाम टटोलने लगे क्योंकि अपने आप को ख़ुद से ज़्यादा कौन पहचान सकता था।
कहते है ढूँढने से भगवान भी मिल जाता है पर कमबख्त नाम न मिला। अपनी खुन्नस किसी पे निकाल नही सकते थे सो मुह भींच कर रह गए।
सारा जोश ठंडा पड़ गया. वापस आने का मन तो नही था पर वहा रहना भी काम न आता और दुसरे लोगो को वोट देने जाते देख कर गुस्सा सातवे आसमान को पार कर चला था। उनकी ऊँगली में लगे निशान और चेहरे की मुस्कान हम चिढाने का कोई मौका नही छोड़ रही थी।
अपना सा मुह लिए भरी कदमो से हम वापस घर को चल दिए. लग रहा था मानो आते जाते लोग कह रहे हो "लौट के बुद्धू घर को अए "। थोड़ा सरकार को कोसा ,थोड़ा ख़ुद को ,कोई और चारा भी नही था।
नई सुबह हुई , नई सरकार बन गई ,जीतने वालो ने खुशिया बाट ली और हारने वालो ने गम। पर इस बीच हमारा दुःख कम करने वाला कोई नही । गम यही है की इस पूरे प्रकरण में हमारा कोई योगदान नही ।
पर हम अब भी आशावान है की अगली बार हमें एक मौका ज़रूर मिलेगा .नई सरकार इस मामले में ज़रूर कोई कदम उठायगी ताकि हर नागरिक अपने मताधिकार का उपयोग देश और देश का भविष्य बनाने में कर सके.
इस आशा के साथ
जय हो

Saturday, February 28, 2009

एक नज़र

ये रियलिटी शोज़
टीवी पर रियलिटी शोज़ की बाढ़ आई हुई है। इस बाढ़ का कहर भी उतना ही भयानक और विनाशकारी है जो पूरे देश में प्रलय मचा सकता है।
हम दोष देते हैं उन राजनैतिक नेताओं को, जो चुनाव के मौसम में जनता को क्षेत्र, जाति, धर्म, भाषा आदि के नाम पर गुमराह करते हैं। जो हर इंसान को दूसरे से भेदभाव करना सिखाते हैं पर लगता है आजकल उन नेताओं का काम टीवी ने संभाल लिया है।
टैलेंट शो में प्रतिभागी अपनी कला ,अपने हुनर को नहीं बल्कि अपने प्रदेश का प्रतिनिधित्व करता है और जनता भी आंख मूँद कर उसकी कला की अनदेखी कर क्षेत्रवाद का हिस्सा बन जाती है।
बड़ा अफ़सोस होता है जब कोई प्रतिभागी टीवी पर अपने प्रदेश ,अपनी भाषा को हत्यार बना कर वोट अपील करता है और राष्ट्रीय एकता, भाईचारा ,सर्व धर्म एक जैसे नारों की खुलेआम धाजियाँ उडाता है ।
भले ही हम प्रगति कर रहे है पर ये भी सच है की हम कल भी समाजवाद का शिकार थे, आज भी है और चाहे इसे खत्म करने की कोशिश भी करे तब भी अप्रत्यक्ष रूप से हमारे दिलो में ये ज़हर घोला जा रहा है की हम एक नहीं है
और जो हमारे जैसा नहीं है उसे चाहे वो कितना भी गुनी हो हमें आगे नही बढ़ने देना है।
हमारी इसी कमी का अंग्रेजों ने फायदा उठाया दंगे कराये,देश के टुकड़े कराये ,हम पर राज किया आज के राजनेता भी यही कर रहे है हमारा फायदा उठा रहे हैं और अब टीवी वाले भी हम पढ़े लिखे अनपढों को मूर्ख बना के पैसा कमा रहे है ।
गलती हमारी ही है जो हम कभी भी अपने -पराये के भेदभाव से ऊपर नहीं उठ सके। इतिहास लौट के नहीं आ सकता ,उसे बदला भी नहीं जा सकता पर उससे सबक ज़रूर लिया जा सकता है
अब या तो हम इन शोज़ को मनोरंजन के तौर पे ले और वोट न करे या वोट करे भी तो जिम्मेदारी से समझदारी और भेदभाव किए बिना।
निर्णय अब आपके हाथ में है

लघु कथा

आत्मविश्वास
घर में शान्ति है मिंकू बाहर खेलने जो गया है। सन्नाटा काटने को दौड़ता है। तभी मम्मी....... मम्मी........ भागता हुआ नन्हा मिंकू अन्दर आया । यहीं हूँ बेटा....... यहीं हूँ ....... । माँ का चेहरा देखा । हांफते हुए ,धूल से सने चेहरे में थकान के बावजूद राहत की रेखाएं स्पष्ट नज़र आती हैं । और वह फ़िर खेलने में मग्न हो जाता है। परन्तु हर दस मिनट में माँ को देखने आ जाता है।
वक्त बदल गया है। समय ने तेज़ी से करवट बदली है । माँ रसोई में खाना बना रही है। मिंकू....... मिंकू...... । आया मम्मी....... । मिंकू मम्मी के साथ रसोई में है। माँ पूरे आत्मविश्वास और प्रेम के साथ खाना बना रही है।

Sunday, February 15, 2009

नादिया सुलेमन
एक अविवाहित , बेरोज़गार , और माता पिता पर निर्भर युवती को उनके 8 और बच्चों के जन्म पर बधाई।
इस युग में जहाँ एक ओर जीवनयापन कठिन से कठिनतम होता जा रहा है वहाँ पहले से ही ६ बच्चों की माँ का और ८ बच्चों को जन्म देने पर हैरानी होना स्वाभाविक है।
इन सभी १४ बच्चों की ज्ञिम्मेदारी कितने मज़बूत कन्धों पर है, ये स्पष्ट है। अनुमान लगाया जा सकता है की इन बच्चों को जिंदगी से ही नहीं बल्कि जिंदगी के लिए भी कितना संघर्ष करना पड़ेगा।
प्रश्न यहीं उठता है की पहले से ही ६ मासूमों का भरण - पोषण करने में असमर्थ माँ का अपनी इच्छा से (कृत्रिम गर्भधारण द्वारा) और ८ मासूमों की जिंदगी दांव पे लगाना कहाँ तक उचित है।
उन नवजातों के भविष्य से ये कैसा खिलवाड़ है जो अपनी मूलभूत सुविधाओं के लिए भी लोगों पर निर्भर है।
जिनके लालन- पालन हेतु आर्थिक और अन्य मदद के लिए तमाम मीडिया में गुहार लगाई जा रही है।
सिवाय सुर्खियों में आने और विश्व रिकॉर्ड बनने के अलावा इतने गैर ज्ञिम्मेदाराना और स्वार्थी कदम के पीछे जो भी कारण हो वो इन मासूमों की जिंदगी और बेहतर भविष्य से बड़ा तो नहीं हो सकता।