Saturday, February 28, 2009

एक नज़र

ये रियलिटी शोज़
टीवी पर रियलिटी शोज़ की बाढ़ आई हुई है। इस बाढ़ का कहर भी उतना ही भयानक और विनाशकारी है जो पूरे देश में प्रलय मचा सकता है।
हम दोष देते हैं उन राजनैतिक नेताओं को, जो चुनाव के मौसम में जनता को क्षेत्र, जाति, धर्म, भाषा आदि के नाम पर गुमराह करते हैं। जो हर इंसान को दूसरे से भेदभाव करना सिखाते हैं पर लगता है आजकल उन नेताओं का काम टीवी ने संभाल लिया है।
टैलेंट शो में प्रतिभागी अपनी कला ,अपने हुनर को नहीं बल्कि अपने प्रदेश का प्रतिनिधित्व करता है और जनता भी आंख मूँद कर उसकी कला की अनदेखी कर क्षेत्रवाद का हिस्सा बन जाती है।
बड़ा अफ़सोस होता है जब कोई प्रतिभागी टीवी पर अपने प्रदेश ,अपनी भाषा को हत्यार बना कर वोट अपील करता है और राष्ट्रीय एकता, भाईचारा ,सर्व धर्म एक जैसे नारों की खुलेआम धाजियाँ उडाता है ।
भले ही हम प्रगति कर रहे है पर ये भी सच है की हम कल भी समाजवाद का शिकार थे, आज भी है और चाहे इसे खत्म करने की कोशिश भी करे तब भी अप्रत्यक्ष रूप से हमारे दिलो में ये ज़हर घोला जा रहा है की हम एक नहीं है
और जो हमारे जैसा नहीं है उसे चाहे वो कितना भी गुनी हो हमें आगे नही बढ़ने देना है।
हमारी इसी कमी का अंग्रेजों ने फायदा उठाया दंगे कराये,देश के टुकड़े कराये ,हम पर राज किया आज के राजनेता भी यही कर रहे है हमारा फायदा उठा रहे हैं और अब टीवी वाले भी हम पढ़े लिखे अनपढों को मूर्ख बना के पैसा कमा रहे है ।
गलती हमारी ही है जो हम कभी भी अपने -पराये के भेदभाव से ऊपर नहीं उठ सके। इतिहास लौट के नहीं आ सकता ,उसे बदला भी नहीं जा सकता पर उससे सबक ज़रूर लिया जा सकता है
अब या तो हम इन शोज़ को मनोरंजन के तौर पे ले और वोट न करे या वोट करे भी तो जिम्मेदारी से समझदारी और भेदभाव किए बिना।
निर्णय अब आपके हाथ में है

लघु कथा

आत्मविश्वास
घर में शान्ति है मिंकू बाहर खेलने जो गया है। सन्नाटा काटने को दौड़ता है। तभी मम्मी....... मम्मी........ भागता हुआ नन्हा मिंकू अन्दर आया । यहीं हूँ बेटा....... यहीं हूँ ....... । माँ का चेहरा देखा । हांफते हुए ,धूल से सने चेहरे में थकान के बावजूद राहत की रेखाएं स्पष्ट नज़र आती हैं । और वह फ़िर खेलने में मग्न हो जाता है। परन्तु हर दस मिनट में माँ को देखने आ जाता है।
वक्त बदल गया है। समय ने तेज़ी से करवट बदली है । माँ रसोई में खाना बना रही है। मिंकू....... मिंकू...... । आया मम्मी....... । मिंकू मम्मी के साथ रसोई में है। माँ पूरे आत्मविश्वास और प्रेम के साथ खाना बना रही है।

Sunday, February 15, 2009

नादिया सुलेमन
एक अविवाहित , बेरोज़गार , और माता पिता पर निर्भर युवती को उनके 8 और बच्चों के जन्म पर बधाई।
इस युग में जहाँ एक ओर जीवनयापन कठिन से कठिनतम होता जा रहा है वहाँ पहले से ही ६ बच्चों की माँ का और ८ बच्चों को जन्म देने पर हैरानी होना स्वाभाविक है।
इन सभी १४ बच्चों की ज्ञिम्मेदारी कितने मज़बूत कन्धों पर है, ये स्पष्ट है। अनुमान लगाया जा सकता है की इन बच्चों को जिंदगी से ही नहीं बल्कि जिंदगी के लिए भी कितना संघर्ष करना पड़ेगा।
प्रश्न यहीं उठता है की पहले से ही ६ मासूमों का भरण - पोषण करने में असमर्थ माँ का अपनी इच्छा से (कृत्रिम गर्भधारण द्वारा) और ८ मासूमों की जिंदगी दांव पे लगाना कहाँ तक उचित है।
उन नवजातों के भविष्य से ये कैसा खिलवाड़ है जो अपनी मूलभूत सुविधाओं के लिए भी लोगों पर निर्भर है।
जिनके लालन- पालन हेतु आर्थिक और अन्य मदद के लिए तमाम मीडिया में गुहार लगाई जा रही है।
सिवाय सुर्खियों में आने और विश्व रिकॉर्ड बनने के अलावा इतने गैर ज्ञिम्मेदाराना और स्वार्थी कदम के पीछे जो भी कारण हो वो इन मासूमों की जिंदगी और बेहतर भविष्य से बड़ा तो नहीं हो सकता।