चुनाव 09
भारत -लोकतंत्र की एक मिसाल। और इस महान देश का हिस्सा होते हुए भी हमें आज तक पाने मताधिकार का उपयोग न कर पाने की ग्लानी से मुक्त होने का मौका इस वर्ष संपन्न होने वाले लोकसभा चुनाव ने दिया। धन्यवाद मीडिया का जिसने "जागो रे " जैसे ऐड बना कर हमें व् हमारे जैसे कई लापरवाह लोगो को अपने कर्तव्य और अधिकारों से अवगत कराया । और धन्यवाद भारत निर्वाचन आयोग का जिसने हमारी सुध ली और अंततः दो साल बाद इस वर्ष हमारा पहचान पत्र बन ही गया ।
जागो रे ने वाकई देश को जगाने का काम किया और हमें अर्थपूर्ण शिक्षा प्रदान की। वक्त था तो अब बस ख़ुद को एक जिम्मेदार व् जागरूक नागरिक का दर्जा दिलाने का। गहन विचार -विमर्श , तर्क -वितर्क करके हमने ये निर्णय ले लिया की किसे अपने देश की कमान सँभालने का मौका देना हैऔर इस दिशा निर्देश के साथ की हमें अगले दिन सुबह जल्दी उठा दिया जाय हम सोने चले गए , पर आँखों से नींद गायब थी क्योंकि कल की सुबह भविष्य की नई किरण लाने वाली थी।
हालांकि अपने पहचान पत्र को देख कर हमें बड़ी निराशा हुई क्योंकि कोई भी पहचान सही और हमारी प्रतीत नही होतीथी। फोटो तो सबसे निराशाजनक थी और उस पत्र को ले कर कोई भी वोट देने जा सकता था। पर जागरूकता का जूनून इतना बढ़ गया था की हमने ये सोचकर गलती माफ़ कर दी की शायद हम ही फोटो खीचते वक्त बरसात में भीग रहे थे।
आख़िर वो सुबह आई और हम अपने गंतव्य के लिए चल दिए। रास्ते भर भी विचारो का आदान -प्रदान चलता रहा और सामने हमारी मंजिल हमें पुकारने लगी. दिल जोरो से धड़कने लगा की आख़िर वो मौका आ ही गया।
पर हाय रे किस्मत वोटर लिस्ट में हमारा नाम गायब । कभी इस लिस्ट कभी उस लिस्ट , धूप में खड़े- खड़े हम यू अपना नाम व् भीगी फोटो तलाशने लगे जैसे कोई जमीन में गढा खजाना ढूंढ रहा हो. वहा बैठे लोगो ने भी हमारी समस्या में कोई खासी दिलचस्पी नही दिखाई । अब क्योंकि हम ही देश के होनहार नागरिक थे तो ये जिम्मा भी हमने ले लिया और स्वयं लिस्ट में अपना नाम टटोलने लगे क्योंकि अपने आप को ख़ुद से ज़्यादा कौन पहचान सकता था।
कहते है ढूँढने से भगवान भी मिल जाता है पर कमबख्त नाम न मिला। अपनी खुन्नस किसी पे निकाल नही सकते थे सो मुह भींच कर रह गए।
सारा जोश ठंडा पड़ गया. वापस आने का मन तो नही था पर वहा रहना भी काम न आता और दुसरे लोगो को वोट देने जाते देख कर गुस्सा सातवे आसमान को पार कर चला था। उनकी ऊँगली में लगे निशान और चेहरे की मुस्कान हम चिढाने का कोई मौका नही छोड़ रही थी।
अपना सा मुह लिए भरी कदमो से हम वापस घर को चल दिए. लग रहा था मानो आते जाते लोग कह रहे हो "लौट के बुद्धू घर को अए "। थोड़ा सरकार को कोसा ,थोड़ा ख़ुद को ,कोई और चारा भी नही था।
नई सुबह हुई , नई सरकार बन गई ,जीतने वालो ने खुशिया बाट ली और हारने वालो ने गम। पर इस बीच हमारा दुःख कम करने वाला कोई नही । गम यही है की इस पूरे प्रकरण में हमारा कोई योगदान नही ।
पर हम अब भी आशावान है की अगली बार हमें एक मौका ज़रूर मिलेगा .नई सरकार इस मामले में ज़रूर कोई कदम उठायगी ताकि हर नागरिक अपने मताधिकार का उपयोग देश और देश का भविष्य बनाने में कर सके.
इस आशा के साथ
जय हो
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hahahaha achha hai -------------badhai
ReplyDeleteकुछ लोग इसलिए भी परेशान रहते हैं कि इस मज़ाक में हम शामिल क्यों हुए....
ReplyDeleteआपका दर्द ठीक है..आखिर यह एक अच्छा अहसास तो है ही, भले ही भ्रम ही सही...
आप की रचना प्रशंसा के योग्य है . लिखते रहिये
ReplyDeleteचिटठा जगत मैं आप का स्वागत है
गार्गी
हुज़ूर आपका भी .......एहतिराम करता चलूं .....
ReplyDeleteइधर से गुज़रा था- सोचा- सलाम करता चलूं ऽऽऽऽऽऽऽऽ
कृपया एक अत्यंत-आवश्यक समसामयिक व्यंग्य को पूरा करने में मेरी मदद करें। मेरा पता है:-
www.samwaadghar.blogspot.com
शुभकामनाओं सहित
संजय ग्रोवर